वैक्सीन के साइड इफेक्ट 6 माह में सामने आ जाते हैं, अब तो 2 साल हो चुके, इसलिए आशंका कम…. डॉ. तेजेंद्र साहू
नवापारा राजिम :- नवापारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डॉ. तेजेंद्र साहू ने वैक्सीन को लेकर चल रही आरोप प्रत्यारोप को लेकर अपनी बातें रखी जिसमे उन्होंने बताया कि दुनिया भर में कोविड की सभी वैक्सीन को मंजूरी महामारी जैसे मुश्किल वक्त के मानदंडों के आधार पर दी गई थी। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब महामारी फैली तो इसके दायरे में आने वाली प्रति दस लाख आबादी में से 15 हजार पर जान का खतरा था। ऐसे में इस आबादी को वैक्सीन देकर महामारी की घातकता 80 से 90% तक घटाई गई। ऐसे में दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक थे। रोग प्रतिरोधी क्षमता दो तरह से विकसित होनी थी। एक टीके से और दूसरी संक्रमित होने पर कुदरती तौर पर। कुदरती तरीके में दुष्प्रभाव की गुंजाइश नहीं होती। देश में लगभग 100 प्रतिशत टीकाकरण हो गया। वहीं, एक बड़ी आबादी को नेचुरल वैक्सीनेशन होने से कोरोना आम जुकाम बन गया। जापान या चीन जैसे देशों में नैचुरल वैक्सीनेशन नहीं हुआ, क्योंकि वहां टीकों से ही प्रतिरोधी क्षमता विकसित की गई। वहां आज भी जोखिम कम नहीं हुआ है। भारत में भी जोखिम है लेकिन घातकता कम है। अच्छी बात है कि दुष्प्रभाव की घातकता समय के साथ कम होती जाती है। कुछ मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है, क्योंकि यह बहुत दुर्लभ मामलों में हो सकता है। भारत में कोविड वैक्सीन के कारण जान जाने का अभी कोई मामला नहीं आया है।
वैक्सीन के साइड इफेक्ट 6 माह में सामने आ जाते हैं, अब तो 2 साल हो चुके, इसलिए आशंका कम
डॉ. तेजेंद्र साहू ने अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी का हवाला देते हुए बताया कि वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों से 3 से 15 को ही होता है। इनमें भी 90% ठीक हो जाते हैं। इसमें मौत की आशंका सिर्फ 0.00013% ही है। यानी 10 लाख में 13 को साइड इफेक्ट है, तो इनमें से जानलेवा रिस्क सिर्फ एक को होगी। जिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के चलते खून का थक्का जमता है, इसके केस कोविड वैक्सीन लगने के पहले भी आ रहे थे। जो कोविड पेशेंट भर्ती हुए, उनकी जांच में ब्लड थिन होनेया क्लॉट बनने की बात सामने आई थी। इसलिए यह नहीं कह सकते कि कोविशील्ड के कारण ऐसा हुआ। हालांकि अब डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि किसी भी वैक्सीन के साइड इफेक्ट 6 महीने में दिख जाते हैं, लेकिन अब दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, ऐसे में किसी जान लेवा रिस्क होने के चांस कम हैं। रही बात खून पतला होने या टीटीएस के मामलों की तो यह समस्या पोस्ट कोविड इफेक्ट हो सकती है, न कि पोस्ट वैक्सीनेशन, क्योंकि कोविड में शरीर के कई हिस्से प्रभावित हुए थे। वैक्सीन ने सिर्फ संक्रमण का प्रभाव कम किया था, लेकिन डोज लगने के पहले वायरस से जो अंग डैमेज हो चुके थे, वो वैसे ही हैं।